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kathasrijan: August 2013
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Wednesday, August 14, 2013. अशोक आंद्रे. तुम तो बहती नदी की वो. जल धारा हो. जिसमें जीवन किल्लोल करता है. नारी,. तुम धरती पर लहलहाती. हरियाली हो. बरसात के साथ. जीवन को नमी का. अहसास कराती हो. नारी,. तुम गंगा सी पवित्र आस्था हो. जो समय को. अपने आँचल में बाँध. विश्वास को पल्लवित करती हो. नारी,. तुम्हारा न रहना. किसी मरघट की शान्ति हो जाती है. फिर सुहागन होने की. बात क्यूँ करती हो? कुछ कदम साथ चलने की बात करो,. नारी,. तुम तो सहचरी हो. जीवन की संरचना करती हो. भरपूर कोशिश करती हो. नारी,. Read in your own script.
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kathasrijan: March 2013
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Sunday, March 10, 2013. अशोक आंद्रे. लेकिन बिल्ली तो ! बिल्ली ने जब भी रास्ते को लांघा. तब हर कोई खामोश हो उसे देखता है. मन में अस्तित्व विहीन शंकाओं के गुबार. उमड़ने लगते हैं लगातार,. कितनी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के चलते. करती हैं निरंतर यात्रा ,. उसकी तमाम इच्छाएं तथा शंकाएं बाजू में खडी रहकर।. कुछ भी तो नहीं बदलता है इस दौरान. मनुष्य है कि इसे ही शाश्वत समझ कर निगाहों से घूरता हुआ. दहलता रहता है खामोश. जिसकी निरंतरता के चलते वह,. दिल को गहरा छू लेती है. Subscribe to: Posts (Atom). Read in your own script.
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kathasrijan: July 2012
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Saturday, July 7, 2012. अशोक आंद्रे. जिस भूखंड से अभी. रथ निकला था सरपट. वहां पेड़ों के झुंड खड़े थे शांत,. नंगा कर रहे थे उन पेड़ों को. हवा के बगुले. मई के महीने में. पोखर में वहीं,. मछली का शिशु. टटोलने लगता है माँ के शरीर को. माँ देखती है आकाश. और समय दुबक जाता है झाड़ियों के पीछे. तभी चील के डैनों तले छिपा. शाम का धुंधलका. उसकी आँखों में छोड़ जाता है कुछ अन्धेरा . पीछे खड़ा बगुला चोंच में दबोचे. उसके शिशु की. देह और आत्मा के बीच के. शून्य को निगल जाता है. और माँ फिर से. Subscribe to: Posts (Atom).
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kathasrijan: December 2011
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Sunday, December 4, 2011. कविताएँ - अशोक आंद्रे. हवा के झोंकों पर. रात्री के दूसरे पहर में. स्याह आकाश की ओर देखते हुए. पेड़ों पर लटके पत्ते हवा के झोंकों पर. पता नहीं किस राग के सुरों को छेड़ते हुए. आकाश की गहराई को नापने लगते हैं. उनके करीब एक देह की चीख. गहन सन्नाटे को दो भागों में चीर देती है. और वह अपने सपने लिए टेड़े-मेड़े रास्तों पर. अपनी व्याकुलता को छिपाए. विस्फारित आँखों से घूरती है कुछ. फिर अपने चारों और फैले खालीपन में. पिरोती है कुछ शब्द. घर के बाहर ,. शायद यही हो सृष&...हवा के झ&...शाय...
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kathasrijan: July 2014
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Tuesday, July 29, 2014. अशोक आंद्रे. आहट दो क़दमों की. रोज शाम के वक्त सुनता है वह. जब उन दो क़दमों की आहट को ,. तब साँसें थम जाती हैं. उन हवाओं की थपथपाहट के साथ. जहाँ ढूँढती हैं कुछ, उसकी निगाहें. घर के आँगन के हर कोनों में,. वहीं पेड़ भी महसूस करते हैं. पत्तों की सरसराहट में उन आहटों को,. उन्हीं दृश्यों के बीच अवाक खड़ा. नैनों की तरलता को थामें. निहारता रहता है आकाश में. अपनी स्व: की आस्थाओं को भीजते हुये. किसी मृग की तरह,. लेकिन जिस्म तो. जिसे पढने में असमर्थ वह. तब पास ही बिछी. Subscribe to: Posts (Atom).
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kathasrijan: January 2015
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Friday, January 16, 2015. अशोक आंद्रे. दरिन्दे. दरिन्दे. करीब की दुनिया में. अँगुलियों की नोक पर टिकाये,. सधे हुये शब्दों की. तासीर में. छुआ देते हैं. मरघट की आग. भीड़ बेचारों की. छिपाये आक्रोश को जेब में. फुसफसाती रहती है वक्तव्य और दुहाई. सभ्य होने का नाटक रचती. खोजने लगती है भीड़. वीरान रास्ता. ताकि सृष्टिकर्ता के विधान को. कोसा जा सके यथासंभव. प्रवक्ता मानवता के स्वयं से दूर छिटके-छिटके. आईने में समाधान के. और साम्राज्य दरिंदों का. बढता ही जाता है लगातार. Subscribe to: Posts (Atom).
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rimjhim: April 2009
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Saturday, April 25, 2009. अशोक आन्द्रे. सच्चा व्यापार. सोंधी हवा महकते फूल ,. भँवरे रहे लता पर झूल ।. कोयल बोले मीठे बोल ,. मिस्री - सी जीवन में घोल ।. नव प्रभात की उजली भोर ,. शुभ भविष्य की मंगल डोर ।. सूरज भी दिखलाता प्यार ,. खेतों का करता सिंगार ।. झूम रही नदिया की धार ,. महक रहा जीवन की सार ।. मेहनत ही सच्चा व्यापार ,. जीवन के सुख का आधार ।. गर्मी का गीत. गर्मी के मौसम में भईया ,. लू लगती है भारी ।. कंबल और रजाई भागे ,. कहकर हमको सॉरी! झुलस रही हरियाली ,. Subscribe to: Posts (Atom).
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rimjhim: October 2011
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Sunday, October 30, 2011. अशोक आंद्रे. सर्दी नानी. सर्दी नानी आई है।. शीत लहर वो लाई है।. गुड़िया. भी बीमार है।. बुखार है।. रात - रात भर रोती. मम्मी भी न सोती है।. थर्मामीटर टूटा है।. डाक्टर अंकल रूठा है।. पैसे का अकाल है।. पहली का सवाल है।. सर्दी नानी जाओ तुम।. और कभी फिर आओ तुम।. गुड़िया. रानी बच्ची है ।. ठीक रहे तो अच्छी है।. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. अशोक आंद्रे. Read in your own script. FEEDJIT Live Traffic Feed. FEEDJIT Live Traffic Map.
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rimjhim: July 2011
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Sunday, July 3, 2011. अशोक आंद्रे. बूंदों का संगीत. रिमझिम-रिमझिम बरखा आई,. काली चादर - सी लहराई. गलियों में बच्चों का शोर,. नाच रहे खुश होकर मोर . पंख उड़ाता गाता गीत,. गर्मी ओढ़ रही है शीत. धरती बाँट रही है प्रीत,. बूंदों का शीतल संगीत. हरित क्रान्ति. है चारों ओर,. हर्षित होकर भागें ढोर. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. अशोक आंद्रे. Read in your own script. FEEDJIT Live Traffic Feed. FEEDJIT Live Traffic Map.