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kathakriti: अशोक आंद्रे
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Friday, 25 June 2010. अशोक आंद्रे. अचानक अट्टहास का क्रूर स्वर . पैर ठिठक गए .जीवन के सभी प्रश्न एक साथ विस्मय से चीख उठे , " कौन है"? फिर अट्टहास. घबराहट ने थोड़ी हिम्मत बटोरी - " कौन हंस रहा है", इस एकांत में? सामने क्यों नहीं आता . मैं" मैं वही हूँ जिसकी तलाश में तुम अज्ञात में पलायन कर रहे हो ". क्या मतलब? मैं हूँ एकांत" . लेकिन तुम इतने क्रूर, इतने डरावने क्यों लग रहे हो"? A REVERIE - by ashok andrey. Great silence of trembling darkness at evening. Melts in the chores, scattered in my surrounding.
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kathakriti: अशोक आंद्रे
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Wednesday, 19 January 2011. अशोक आंद्रे. इन्हीं पेड़ों पर वह कितनी बार चढ़ा - उतरा है निशा के कहने पर । कितना अच्छा. कितना अजीब लगता है आज सोचने पर, गाँव का निपट बेवकूफ - सा दिखने. वह अक्सर डरी - डरी सी रहने लगी थी. पुलिस की भी कोई नौकरी होती है? लगा, हवा फिर तेज हो गयी है. अन्धेरा भी कुछ ज्यादा ही घिर आया है. सर्दी की. एक गिलास पानी पीकर , बड़े साहब के कमरे की तरफ चल दिया था वह. जहां बड़े स...साहब अभी भी उससे कुछ कह रहे थे. और वह उनकी हिदì...हुआ अन्दर ही अन्दर प्ल...उसने चुपचा...चला...
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kathakriti: May 2011
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Monday, 30 May 2011. अशोक आंद्रे. दूसरी मात. दिन की आँख खुलने से पहले ही चिड़ियों की चहचहाहट ने रतन की नींद को पूरी तरह से उचाट दिया था. कुनमुनाते हुए रजाई को एक तरफ धकेल, अंगड़ाई से शरीर. में फुर्ती का एहसास महसूसा था रतन ने. रात्री का टुकड़ा भर अँधेरा अभी भी कमरे की कैद से छूट. बाहर के वातावरण को सूंघना चाहा, हवा का सर्द झोंका पूरे कमरे में आतंक फैला गया. चाय की तलब एक बार फिर नन्हे खरगोश की तरह रतन के भीतर. छा जाती है. पड़ोसी रामलाल कंठ - फ&...है, तभी तो.". कुछ प्रतिवाद किय&...रजाई को अपन...ब्र...
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kathakriti: अशोक आंद्रे
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Wednesday, 11 August 2010. अशोक आंद्रे. घर की तलाश. मुद्दतों के बाद लौटा था वह. अपने घर की ओर,. उस समय के इतिहासिक हो गए घर के. चिन्हों के खंडहरात. शुन्य की ओर ताकते दिखे प्रतीक्षारत . उस काल की तमाम स्मृतियाँ. घुमडती हुई दिखाई दीं ,. हर ईंट पर झूलता हुआ घर. भायं-भायं करता दीखा,. दीखा पेड़ , जिसके नीचे माँ इन्तजार करती थी. शाम ढले पूरे परिवार का . उसी घर के दायें कोने में पड़ी सांप की केंचुली. चमगादड़ों द्वारा छोडी गयी दुर्गन्ध. जबकि दुसरे कोने में. कोशिश कर रही थीं,. रख गया था. करते हुए,. अनगिनत स...
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kathakriti: January 2013
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Monday, 7 January 2013. अशोक आंद्रे. टी वी से पोषित होते हमारे धार्मिक तथ्य (लघु-कथा. भीड़ - भाड़ से दूर विदुर - कुटी अपने आप में रम्य स्थान होने के बावजूद अपने दुर्दिन को जीती हुई दिखाई को जीती हुई दिखाई दे रही थी।. विराजती थी कभी, आज जड़ हो उसी धरती पर मौन हो गयी थी।. तक। पता नहीं क्यों सारे सवाल निरुतर हो लौट आए थे हम तक।. बाबू जी, आप काहे को परेशान हो रहे हो, कल टी . वी . पर महाभारत आएगा हीð...मिल ही जाएँगी।". मैं, पत्नी के साथ इस जानकारी पर अव&#...View my complete profile. Read in your own script.
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rimjhim: April 2009
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Saturday, April 25, 2009. अशोक आन्द्रे. सच्चा व्यापार. सोंधी हवा महकते फूल ,. भँवरे रहे लता पर झूल ।. कोयल बोले मीठे बोल ,. मिस्री - सी जीवन में घोल ।. नव प्रभात की उजली भोर ,. शुभ भविष्य की मंगल डोर ।. सूरज भी दिखलाता प्यार ,. खेतों का करता सिंगार ।. झूम रही नदिया की धार ,. महक रहा जीवन की सार ।. मेहनत ही सच्चा व्यापार ,. जीवन के सुख का आधार ।. गर्मी का गीत. गर्मी के मौसम में भईया ,. लू लगती है भारी ।. कंबल और रजाई भागे ,. कहकर हमको सॉरी! झुलस रही हरियाली ,. Subscribe to: Posts (Atom).
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rimjhim: October 2011
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Sunday, October 30, 2011. अशोक आंद्रे. सर्दी नानी. सर्दी नानी आई है।. शीत लहर वो लाई है।. गुड़िया. भी बीमार है।. बुखार है।. रात - रात भर रोती. मम्मी भी न सोती है।. थर्मामीटर टूटा है।. डाक्टर अंकल रूठा है।. पैसे का अकाल है।. पहली का सवाल है।. सर्दी नानी जाओ तुम।. और कभी फिर आओ तुम।. गुड़िया. रानी बच्ची है ।. ठीक रहे तो अच्छी है।. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. अशोक आंद्रे. Read in your own script. FEEDJIT Live Traffic Feed. FEEDJIT Live Traffic Map.
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rimjhim: July 2011
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Sunday, July 3, 2011. अशोक आंद्रे. बूंदों का संगीत. रिमझिम-रिमझिम बरखा आई,. काली चादर - सी लहराई. गलियों में बच्चों का शोर,. नाच रहे खुश होकर मोर . पंख उड़ाता गाता गीत,. गर्मी ओढ़ रही है शीत. धरती बाँट रही है प्रीत,. बूंदों का शीतल संगीत. हरित क्रान्ति. है चारों ओर,. हर्षित होकर भागें ढोर. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. अशोक आंद्रे. Read in your own script. FEEDJIT Live Traffic Feed. FEEDJIT Live Traffic Map.
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शख्स - मेरी कलम से: June 2011
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शख्स - मेरी कलम से. गुरुवार, 30 जून 2011. बरगद सी विशालता (अशोक आंद्रे ). अशोक आंद्रे . कथासृजन ब्लॉग http:/ wwwkathasrijan. पर जिस दिन मैं गई , मैंने पढ़ा -. आँख बन्द होते ही. एहसासों की पगडण्डी पर. शब्दों का हुजूम. थाह लेता हुआ बन्द कोठरी के. सीलन भरे वातावरण में. अर्थ को छूने के प्रयास में. विश्वास की परतों को. तह - दर -तह लगाता है. जहाँ उन परतों को छूने में , हर बार. पोर - पोर दुखने लगता है ।. कर रख न पाया . धीरे-धीरे मैं लेखन से जुड़ता...पाण्डेय जी, स्वर्ग...लेकिन पहली ब...कवितì...