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कविता-समय

मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. शनिवार, 2 मई 2015. नितीश मिश्रा की कविताएँ. जवानी में स्नेह अगर. 160; / चाँद को भी नहीं मिलता. 160; / तब उसमें भी शायद इतनी. 160; / चाँदनी नहीं होती. धूप आहिस्ते-आहिस्ते. मेरे अंजुमन में बैठती हैं. कुछ मेरे दोस्त की तरह. गौरैया आ जाती हैं. कुछ तिनके लिये. अपने आशियाने में. रवीन्द्र के दास. नितीश मिश्रा. मोबाईल नं. मिलते बिछड़ते हुए. हँसती हुई. थामती हैं. बांहों से. सूखे . मौन से गुन्थित. सूने से पहाड़ को. और रंगती हैं. कुछ देर तक. आसमा...

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. शनिवार, 2 मई 2015. नितीश मिश्रा की कविताएँ. जवानी में स्नेह अगर. 160; / चाँद को भी नहीं मिलता. 160; / तब उसमें भी शायद इतनी. 160; / चाँदनी नहीं होती. धूप आहिस्ते-आहिस्ते. मेरे अंजुमन में बैठती हैं. कुछ मेरे दोस्त की तरह. गौरैया आ जाती हैं. कुछ तिनके लिये. अपने आशियाने में. रवीन्द्र के दास. नितीश मिश्रा. मोबाईल नं. मिलते बिछड़ते हुए. हँसती हुई. थामती हैं. बांहों से. सूखे . मौन से गुन्थित. सूने से पहाड़ को. और रंगती हैं. कुछ देर तक. आसमा...
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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. शनिवार, 2 मई 2015. नितीश मिश्रा की कविताएँ. जवानी में स्नेह अगर. 160; / चाँद को भी नहीं मिलता. 160; / तब उसमें भी शायद इतनी. 160; / चाँदनी नहीं होती. धूप आहिस्ते-आहिस्ते. मेरे अंजुमन में बैठती हैं. कुछ मेरे दोस्त की तरह. गौरैया आ जाती हैं. कुछ तिनके लिये. अपने आशियाने में. रवीन्द्र के दास. नितीश मिश्रा. मोबाईल नं. मिलते बिछड़ते हुए. हँसती हुई. थामती हैं. बांहों से. सूखे . मौन से गुन्थित. सूने से पहाड़ को. और रंगती हैं. कुछ देर तक. आसमा...

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कविता-समय: October 2011

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011. करवाचौथ एक सुपरहिट त्यौहार है. त्यौहार. महत्त्वपूर्ण. युक्ति. हिंदी. फ़िल्में. त्यौहार. फिल्माया. श्रृंगार. नायिकाएँ. स्त्रियाँ. दीर्घायु. निभाती. हैं।. धर्मप्रधान. प्राप्त. धर्मप्रधानता. हैं।. फ़िल्मी. मुलम्मा. विद्रोही. क्यों. मर्दों. चाहिए।. फिल्मकारों. फिल्मों. बागवां. दिखाने. आँखें. भुक्तभोगी. शर्तिया. होंगे. स्त्रियाँ. निराहार. कुरीतियाँ. अमीरों. फेंकी. मौकों. सेंकता. अख़बारों. चैनलों. विज्ञापन. 5) लेक&#2...

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कविता-समय: June 2010

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. बुधवार, 30 जून 2010. पुलिसवालों की ड्यूटी. अब आप कहेंगे कि वे तो जाँच करते हैं हमें उनका सहयोग करना चाहिए क्यंकि मुद्दा नागरिक सुरक्षा का है।. देखिये, वे कुछ इस तरह नागरिक को परेशान करते है,. आपको हाथ देकर रुकवा लेंगे।. फिर आपका ड्राइविंग लाइसेंस मांगकर रख लेंगे।. कोई कम निकला तो चालान करेंगे।. आप शरीफ दीखते है तो गहराई से काटेंगे।. नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. आना आपका.

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कविता-समय: May 2011

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. सोमवार, 30 मई 2011. जाति. जाति. भारतीय समाज की एक अजीब सी विशेषता है जाति।. इस जाति के कारण जाति-भेद है , जातिवाद है , जात-पांत है।. परंपरा से इस पर बहस होती आ रही है।. संस्कृति-विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग,. जो पश्चिमी और आधुनिक इतिहास दृष्टि से अपने समय को आंकता हैं,. जाति की धारणा. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. गुरुवार, 26 मई 2011. इन दो म&#...

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कविता-समय: April 2011

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011. कविता पढना . कविता लिखने से ज्यादा मुश्किल है! लिख दी - यह बात काबिले-गौर है. दीगर बात है कि यह बात सब पर लागू नहीं होती . प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. गुरुवार, 14 अप्रैल 2011. भाषा सुधार के रास्ते. आपने उसे लिखने को कहा? जब बन पाया था संगठन में प्रवेश. नया सम्बन्ध है. 1 टिप्पणी:. दार्श...साह...

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कविता-समय: July 2010

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. गुरुवार, 22 जुलाई 2010. समर्थ की मौत पर सौदेबाजी. हालाँकि यह कोई नहीं जानता कि आत्महत्या के लिए दरअसल उकसाया किसने? उसकी गर्लफ्रेंड के पिता ने या स्वयं इसके पिता ने? मुझे बेहद ख़ुशी है कि हमलोग अब बहुत तरक्की कर चुके. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. रवीन्द्र दास. बालवृंद. आना आपका.

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भारतीय-दर्शन: January 2010

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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). मंगलवार, 19 जनवरी 2010. झूठ क्या होता है? बड़ा ही पुराना प्रसंग है - सच और झूठ का ।. क्या होता है सच? हमें पता है? सच क्या था? और हम प्रलाप नहीं करना चाहते, हम अपने भावों को संप्रेषित करना चाहते हैं।. लेकिन झूठ? झूठ का कोई चेहरा पहचानते हैं आप? यह झूठ क्या होता है? आप जिसे सच नहीं मानते , वह झूठ होता है, है न! मतलब है ।. होता है।. 0 टिप्पणियाँ. शुक्रवार, 8 जनवरी 2010. और जब नहीं समझे&#230...विकल&#238...

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जाणा जोगी दे नाल: 05/27/13

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जाणा जोगी दे नाल. Monday, May 27, 2013. उसके लिए . जो खुद एक कविता है. बहुत हौले से ही आया था वो. एक मीठे एहसास की तरह. ठंडी मधुर बयार की तरह. जख्मों पे शीतल मरहम की तरह. लेकिन उसका आना. मुझे छोड़ गया है. अशांत लहरों के बीच. जहां है भावनाओं के ज्वार. असीमित –अपरिमित-निरंतर. शायद ऐसा हो होता है प्रेम. सुकून हैं जहां. वहीं तड़प भी,. औदार्य है,. समर्पण है. लेकिन है बेइंतिहा स्वार्थ भी. कि मुझे करना भी नहीं है अलौकिक प्रेम. जितनी कि मैं. मेरी भावनाएं . ताकि जान सको तुम. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत...

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भारतीय-दर्शन: February 2011

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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011. उपनिषद साहित्य. ३ यह मानवीय चिंता और आकांक्षा का स्वभाव है कि वह हर स्थिति के मूल की खोज का प्रयास करती है. ६ एक से अनेक. और अनेक से एक. ७ आधुनिक समालोचकों और इतिहासवादियों को, संभवतः, उपनिषद दुरूह, कल्पित, रहस्यात्मक प्रतीत हो...८ उपनिषद अपने वैचारिक दृष्टिकोण के लिए वैदिक पवित्रता क&#...प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. 0 टिप्पणियाँ. कर्म-फल और ईश्वर. ४ जीवन में सत&#...६ जीवन ज&...

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भारतीय-दर्शन: दर्शन और कविता

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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). रविवार, 15 मई 2011. दर्शन और कविता. क्षण और क्षण के बीच भी अंतराल होता है।. कवि होना सहज नहीं , प्रत्युत एक विवशता है।. दर्शन सभ्यता और संस्कृति को ढांचा और आकार देता है . और कविता तन्यता और चिकनापन देती है।. दर्शन ज्ञान की परम्परा है और कविता ज्ञान का संवेगात्मक विराम।. मैं दार्शनिक हूँ . मैं कवि होने का अभिलाषी हूँ . प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. कुछ इधर भी.

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भारतीय-दर्शन: September 2010

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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). शुक्रवार, 24 सितंबर 2010. अहंकार बोले तो घमंड. घमंड क्या है? संत कबीर की सहज वाणी को याद करें-. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।. औरन को सीतल करे , आपहु को सुख होय।।. प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. 2 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रवीन्द्र दास. दार्शनिक, कवि एवं मनुष्यता का प्रेमी. हिन्दी में लिखिए. विजेट आपके ब्लॉग पर. कुछ इधर भी. चश्म-ए-बद्दूर.

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अलक्षित: सपनों में होने पर भी खुश था

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Monday, November 2, 2009. सपनों में होने पर भी खुश था. सपनों में विचरना नियति थी उसकी. कोई शौक या स्वेच्छा नहीं।. पिछली जिंदगियों में बिताए थे उसने भी सुख और आराम के हकीकी वक्त. उसकी याद अब भी है उसके जेहन में. किसी ताजे घाव की मानिंद. कि कोशिश करके भी नहीं भुला पा रहा था अपना अतीत।. उसने किया था ज़िक्र कई बार. नशे की हालत में. करता हुआ बक-बक बेसिर-पैर की बातें।. कि नही मिल पाया कोई मुनासिब उस्ताद. ऐसा ही कहता था तब भी. ऐसा ही कहता है अब भी. बेहद हसीन. वह खुश रहे।. कि वह खुश है. View my complete profile.

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अलक्षित: जहाँ जो कुछ भी अलक्षित

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Tuesday, October 27, 2009. जहाँ जो कुछ भी अलक्षित. जहाँ जो भी अलक्षित रह गया है. हूँ,. मौन और एकांत क्षण में ।. पेड़ से पत्ता गिरा था टूटकर. तीर रहा था जलप्लावन में कभी. फिर हुआ क्या? बैठ कर उसपर बची थी एक चींटी. बाढ़ का थामना नियत था. थम गई थी. और चींटी को मिली धरती समूची. सड़ गया पत्ता. कहीं जो गड़ गया था. मैं वही हूँ. कहीं कुछ भी जो अलक्षित रह गया है. मैं वही हूँ, मैं वही हूँ।. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. Subscribe to: Post Comments (Atom). मेरी कविताएं पढें. रवीन्द्र दास. View my complete profile.

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अलक्षित: कोई फर्क नहीं पड़ता

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Wednesday, September 23, 2009. कोई फर्क नहीं पड़ता. अक्सर भटकता हुआ मैं पहुँच जाता हूँ उस तन्हाई में. जहाँ तुम रूठे से बैठे रहते हो।. और जब भी करता हूँ कोशिश मनाने की. गुम हो जाते हो न जाने कहाँ! उस ठहरे वक्त का इंतजार मैं. करता रहा हूँ आज तक. जब तुम आकर मेरी तन्हाई में. ठहर जाओगे. और मैं मर जाऊंगा. एक सुखांत नाटक की तरह हो जाएगा अंत. मेरी जिंदगी का ।. जो मैं बताऊँ झूठ. तो लोग बहाएँगे आंसू. बताऊँ सच. तो कहेंगे दीवाना , मनचला . तुम चले गए बिना बताए. तुम्हारा जाना. प्रस्तुतकर्ता. View my complete profile.

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अलक्षित: बीस और छोटी कविताएं

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Wednesday, March 20, 2013. बीस और छोटी कविताएं. उस सुनसान रास्ते पर. एक बांसुरी मिली. जैसे ही होठों से लगाया. एक स्त्री की रोने की आवाज़ निकली. दूर जा गिरी वह बांसुरी. बन खडी हुई. फुफकारता सांप बन कर. रोने की आवाज़ बदल गई. कहकहे में. मैं हतप्रभ हो. तुम्हें याद करने लगा. इतना भी जरूरी न था कि मैं कुछ बोलूं. या कुछ बोलो ही तुम. हम ने महसूस किया ही है. कि टूटता ही है कुछ न कुछ. बोलने से. नहीं बोलने का अर्थ. खामोशी ही नहीं, कुछ और भी होता है. हजारों की भीड में. कुछ और करना. शेष है? एक चेहरा. आज़ाद ह&#2379...

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Tuesday, March 15, 2011. Amul - The Taste of India. I follow the Amul advertisement. I love them. They are just great. to the point. Here is the new one. India's poor performance against South Africa in the on-going Cricket World cup - Mar' 2011. You can follow the Amul advertisement here. Http:/ www.amul.com/hits.html. Friday, March 4, 2011. I came across this nice poem and thought this would be a good start to getting back to this blog. :). You catch it like the flu. When someone smiled at me today.

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