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भारतीय-दर्शन: January 2010
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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). मंगलवार, 19 जनवरी 2010. झूठ क्या होता है? बड़ा ही पुराना प्रसंग है - सच और झूठ का ।. क्या होता है सच? हमें पता है? सच क्या था? और हम प्रलाप नहीं करना चाहते, हम अपने भावों को संप्रेषित करना चाहते हैं।. लेकिन झूठ? झूठ का कोई चेहरा पहचानते हैं आप? यह झूठ क्या होता है? आप जिसे सच नहीं मानते , वह झूठ होता है, है न! मतलब है ।. होता है।. 0 टिप्पणियाँ. शुक्रवार, 8 जनवरी 2010. और जब नहीं समझेæ...विकलî...
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जाणा जोगी दे नाल: 05/27/13
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जाणा जोगी दे नाल. Monday, May 27, 2013. उसके लिए . जो खुद एक कविता है. बहुत हौले से ही आया था वो. एक मीठे एहसास की तरह. ठंडी मधुर बयार की तरह. जख्मों पे शीतल मरहम की तरह. लेकिन उसका आना. मुझे छोड़ गया है. अशांत लहरों के बीच. जहां है भावनाओं के ज्वार. असीमित –अपरिमित-निरंतर. शायद ऐसा हो होता है प्रेम. सुकून हैं जहां. वहीं तड़प भी,. औदार्य है,. समर्पण है. लेकिन है बेइंतिहा स्वार्थ भी. कि मुझे करना भी नहीं है अलौकिक प्रेम. जितनी कि मैं. मेरी भावनाएं . ताकि जान सको तुम. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत...
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भारतीय-दर्शन: February 2011
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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011. उपनिषद साहित्य. ३ यह मानवीय चिंता और आकांक्षा का स्वभाव है कि वह हर स्थिति के मूल की खोज का प्रयास करती है. ६ एक से अनेक. और अनेक से एक. ७ आधुनिक समालोचकों और इतिहासवादियों को, संभवतः, उपनिषद दुरूह, कल्पित, रहस्यात्मक प्रतीत हो...८ उपनिषद अपने वैचारिक दृष्टिकोण के लिए वैदिक पवित्रता क&#...प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. 0 टिप्पणियाँ. कर्म-फल और ईश्वर. ४ जीवन में सत&#...६ जीवन ज&...
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भारतीय-दर्शन: दर्शन और कविता
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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). रविवार, 15 मई 2011. दर्शन और कविता. क्षण और क्षण के बीच भी अंतराल होता है।. कवि होना सहज नहीं , प्रत्युत एक विवशता है।. दर्शन सभ्यता और संस्कृति को ढांचा और आकार देता है . और कविता तन्यता और चिकनापन देती है।. दर्शन ज्ञान की परम्परा है और कविता ज्ञान का संवेगात्मक विराम।. मैं दार्शनिक हूँ . मैं कवि होने का अभिलाषी हूँ . प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. कुछ इधर भी.
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भारतीय-दर्शन: September 2010
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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). शुक्रवार, 24 सितंबर 2010. अहंकार बोले तो घमंड. घमंड क्या है? संत कबीर की सहज वाणी को याद करें-. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।. औरन को सीतल करे , आपहु को सुख होय।।. प्रस्तुतकर्ता रवीन्द्र दास. 2 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). रवीन्द्र दास. दार्शनिक, कवि एवं मनुष्यता का प्रेमी. हिन्दी में लिखिए. विजेट आपके ब्लॉग पर. कुछ इधर भी. चश्म-ए-बद्दूर.
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अलक्षित: सपनों में होने पर भी खुश था
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Monday, November 2, 2009. सपनों में होने पर भी खुश था. सपनों में विचरना नियति थी उसकी. कोई शौक या स्वेच्छा नहीं।. पिछली जिंदगियों में बिताए थे उसने भी सुख और आराम के हकीकी वक्त. उसकी याद अब भी है उसके जेहन में. किसी ताजे घाव की मानिंद. कि कोशिश करके भी नहीं भुला पा रहा था अपना अतीत।. उसने किया था ज़िक्र कई बार. नशे की हालत में. करता हुआ बक-बक बेसिर-पैर की बातें।. कि नही मिल पाया कोई मुनासिब उस्ताद. ऐसा ही कहता था तब भी. ऐसा ही कहता है अब भी. बेहद हसीन. वह खुश रहे।. कि वह खुश है. View my complete profile.
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अलक्षित: जहाँ जो कुछ भी अलक्षित
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Tuesday, October 27, 2009. जहाँ जो कुछ भी अलक्षित. जहाँ जो भी अलक्षित रह गया है. हूँ,. मौन और एकांत क्षण में ।. पेड़ से पत्ता गिरा था टूटकर. तीर रहा था जलप्लावन में कभी. फिर हुआ क्या? बैठ कर उसपर बची थी एक चींटी. बाढ़ का थामना नियत था. थम गई थी. और चींटी को मिली धरती समूची. सड़ गया पत्ता. कहीं जो गड़ गया था. मैं वही हूँ. कहीं कुछ भी जो अलक्षित रह गया है. मैं वही हूँ, मैं वही हूँ।. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. Subscribe to: Post Comments (Atom). मेरी कविताएं पढें. रवीन्द्र दास. View my complete profile.
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अलक्षित: कोई फर्क नहीं पड़ता
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Wednesday, September 23, 2009. कोई फर्क नहीं पड़ता. अक्सर भटकता हुआ मैं पहुँच जाता हूँ उस तन्हाई में. जहाँ तुम रूठे से बैठे रहते हो।. और जब भी करता हूँ कोशिश मनाने की. गुम हो जाते हो न जाने कहाँ! उस ठहरे वक्त का इंतजार मैं. करता रहा हूँ आज तक. जब तुम आकर मेरी तन्हाई में. ठहर जाओगे. और मैं मर जाऊंगा. एक सुखांत नाटक की तरह हो जाएगा अंत. मेरी जिंदगी का ।. जो मैं बताऊँ झूठ. तो लोग बहाएँगे आंसू. बताऊँ सच. तो कहेंगे दीवाना , मनचला . तुम चले गए बिना बताए. तुम्हारा जाना. प्रस्तुतकर्ता. View my complete profile.
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अलक्षित: बीस और छोटी कविताएं
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Wednesday, March 20, 2013. बीस और छोटी कविताएं. उस सुनसान रास्ते पर. एक बांसुरी मिली. जैसे ही होठों से लगाया. एक स्त्री की रोने की आवाज़ निकली. दूर जा गिरी वह बांसुरी. बन खडी हुई. फुफकारता सांप बन कर. रोने की आवाज़ बदल गई. कहकहे में. मैं हतप्रभ हो. तुम्हें याद करने लगा. इतना भी जरूरी न था कि मैं कुछ बोलूं. या कुछ बोलो ही तुम. हम ने महसूस किया ही है. कि टूटता ही है कुछ न कुछ. बोलने से. नहीं बोलने का अर्थ. खामोशी ही नहीं, कुछ और भी होता है. हजारों की भीड में. कुछ और करना. शेष है? एक चेहरा. आज़ाद हो...