subodh-srivastava.blogspot.com
सुबोध सृजन: December 2014
http://subodh-srivastava.blogspot.com/2014_12_01_archive.html
सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. मंगलवार, 30 दिसंबर 2014. दस्तक: दो कविताएं - नरेश अग्रवाल. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. कविता . कविता का सृजन. भावनाओं का उदद्वेलन. विचारों का सम्पादन. शब्दों का रसवादन. कहीं बलवती भावनाएं. कहीं विचारों की अठखेलियाँ. कहीं त्वरित होती संवेदनाएं. कहीं शब्दों की पहेलियाँ. कहीं आत्मा की अभिव्यक्ति. कहीं मन की विरक्ति. कहीं चित मे उतरता संतोष. कहीं प्यार या आसक्ति. कहीं व्याकुल मन की वेदना. कहीं निरंतर बहती धार. गिरती पत्थर पर छन छन. या फटे ट...उन पæ...
kavyayug.blogspot.com
काव्ययुग: ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ
http://kavyayug.blogspot.com/2015/08/blog-post_17.html
काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 17 अगस्त 2015. ऋषभ देव शर्मा की तेवरियाँ. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. रो रही है बाँझ धरती, मेह बरसो रे. प्रात ऊसर, साँझ परती, मेह बरसो रे. सूर्य की सारी बही में धूपिया अक्षर. अब दुपहरी है अखरती, मेह बरसो रे. नागफनियाँ हैं सिपाही, खींच लें आँचल. लाजवंती आज डरती, मेह बरसो रे. राजधानी भी दिखाती रेत का दर्पण. हिरनिया ले प्यास मरती, मेह बरसो रे. रावणों की वाटिका में भूमिजा सीता. शीश अपने आग धरती, मेह बरसो रे. आपने बंजर बनाई जो धरा. सँभल परीक्षित! श्वेत ट...ये ...
subodh-srivastava.blogspot.com
सुबोध सृजन: October 2014
http://subodh-srivastava.blogspot.com/2014_10_01_archive.html
सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014. आशुतोष द्विवेदी की दो नज़में. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. मीर के नाम). मैं घिरा हूँ धुँए के घेरे में. और धुँआ है कि बढ़ता जाता है. मेरे सीने पे लोटता है कभी. मेरे सिर चढ़ के बोलता है कभी. मेरी आँखों से निकलता है कभी. मेरे होठों से फिसलता है कभी. मेरे कानों में कभी घुसता है. हाथ-पावों में कभी चुभता है. मेरी रगों में कभी जम जाता. मेरी साँसों में कभी थम जाता. छेड़कर मुझको झूमता है कभी. एक ऊबन सी ऊँघती रहती. वीसीपी, ट&...सब मशीन&#...
wwwkathasrijan.blogspot.com
kathasrijan: August 2013
http://wwwkathasrijan.blogspot.com/2013_08_01_archive.html
Wednesday, August 14, 2013. अशोक आंद्रे. तुम तो बहती नदी की वो. जल धारा हो. जिसमें जीवन किल्लोल करता है. नारी,. तुम धरती पर लहलहाती. हरियाली हो. बरसात के साथ. जीवन को नमी का. अहसास कराती हो. नारी,. तुम गंगा सी पवित्र आस्था हो. जो समय को. अपने आँचल में बाँध. विश्वास को पल्लवित करती हो. नारी,. तुम्हारा न रहना. किसी मरघट की शान्ति हो जाती है. फिर सुहागन होने की. बात क्यूँ करती हो? कुछ कदम साथ चलने की बात करो,. नारी,. तुम तो सहचरी हो. जीवन की संरचना करती हो. भरपूर कोशिश करती हो. नारी,. Read in your own script.
subodh-srivastava.blogspot.com
सुबोध सृजन: June 2015
http://subodh-srivastava.blogspot.com/2015_06_01_archive.html
सुबोध सृजन. कविता एवं विचार की अंतरजाल पत्रिका. मंगलवार, 30 जून 2015. चार कविताएं-कल्पना मिश्रा बाजपेई. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. सोच का नन्हा बादल. समय के रथ पर. आतीं हैं रंगों से भरी कई बोतलें. रोज सब के आँगन में. और चुपके से. रनरेज़ की तूलिका भी उकेरती. है जीवन के कई अनदेखे चित्र. जिनसे रु-ब-रु होना ही. शायद हमारी है नियति. इसी सबके बीच. गुन-गुनाती सी ज़िंदगानी. तुम्हारी सोच की श्रंखलाओं पर. ऐसे ठुमकती. जैसे नाच रहा हो मतवाला मोर. बादलों की देख कर. श्यामली सी सघनता. मजबूर हो जाओ. और हाँ. नीरव...
kavyayug.blogspot.com
काव्ययुग: पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत
http://kavyayug.blogspot.com/2015/08/blog-post_10.html
काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 10 अगस्त 2015. पूर्णिमा वर्मन के पांच नवगीत. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जीने की आपाधापी में. कितने कमल खिले जीवन में. जिनको हमने नहीं चुना. जीने की. आपाधापी में भूला हमने. ऊँचा ही ऊँचा. तो हरदम झूला हमने. तालों की. जीवन की. सच्चाई पर. पत्ते जो भी लिखे गए थे,. उनको हमने नहीं गुना. मौसम आए मौसम बीते. हम नहिं चेते. अपने छूटे देस बिराना. सपने रीते. सपनों की. आवाजों में. रेलों और. जहाज़ों में. अपना मन ही नहीं सुना. कोयलिया बोली. लगता है. फँसता है. लगता है. रंग&#...
kavyayug.blogspot.com
काव्ययुग: July 2015
http://kavyayug.blogspot.com/2015_07_01_archive.html
काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". 1 टिप्पणी:. तुम्ह&#...तुम...
kavyayug.blogspot.com
काव्ययुग: पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर
http://kavyayug.blogspot.com/2015/08/blog-post_3.html
काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 3 अगस्त 2015. पुस्तक चर्चा: कवि महेंद्रभटनागर का चाँद-खगेंद्र ठाकुर. कुछ और जीना चाहता हूँ. 8216;चाँद, मेरे प्यार! पहली रचना है ‘राग-संवेदन’, जिसमें कवि एक सामान्य सत्य की तरह जीवन का यह सत्य व्यक्त करता है —. सब भूल जाते हैं. केवल / याद रहते हैं. आत्मीयता से सिक्त. कुछ क्षण राग के! आज जब देखा तुम्हें. कुछ और जीना चाहता हूँ! विष और पीना चाहता हूँ! कुछ और जीना चाहता हूँ! याद आता है. तुम्हारा रूठना! शेष जीवन. जी सकूँ सुख से. गौरैया हो. उड़ जाओगी! इस प्रसंग ...इसे...
kavyayug.blogspot.com
काव्ययुग: गोपालदास 'नीरज' के दोहे
http://kavyayug.blogspot.com/2015/07/blog-post_27.html
काव्ययुग. कविता की ई-पत्रिका. सोमवार, 27 जुलाई 2015. गोपालदास 'नीरज' के दोहे. चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार. जग का रंग अनूप. वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य. किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।. जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान. उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।. जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र. माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।. दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ. उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।. बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।. गोपालदास "नीरज". लेबल: दोहे. इस प्रस्...
SOCIAL ENGAGEMENT