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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : ग़ज़ल(फुर्सत में सियासत)
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें. सोमवार, 17 अगस्त 2015. ग़ज़ल(फुर्सत में सियासत). किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की. अपने ख्बाबों और ख़यालों में सभी मशगूल दिखतें हैं. सबक क्या क्या सिखाता है. जीबन का सफ़र यारों. मुश्किल में बहुत मुश्किल से. अपने दोस्त. दिखतें हैं. क्यों सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती. नहीं लेना हक़ीक़त से क्यों मन से आज लिखतें हैं. धर्म देखो कर्म देखो अब असर दीखता है पैसों का. मदन मोहन सक्सेना. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. नई पोस्ट. इस गैज...
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : June 2015
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें. सोमवार, 22 जून 2015. गज़ल (शून्यता). शून्यता). जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है. उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं. सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना. देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है. कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है. अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है. दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को. आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है. मदन मोहन सक्सेना. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. ख्वावों. ग़ज़ल :. दिल के...
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : August 2014
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ. Friday, August 22, 2014. मेरी पोस्ट ग़ज़ल (फुर्सत में सियासत) आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में. मेरी पोस्ट. फुर्सत में सियासत. आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में. प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी पोस्ट. फुर्सत में सियासत. आपका ब्लॉग ए बी पी न्यूज़ में शामिल की गयी है। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं।. किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की. जीबन का सफ़र क्या क्या सबक सिखाता है यारों. ग़ज़ल: फुर्सत में सियासत. मदन मोहन सक्सेना. Wednesday, August 20, 2014. प...
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : September 2013
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ. Thursday, September 26, 2013. प्यार का बंधन. अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ. पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना. रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर. ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना. अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ. सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ. तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है. तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर क्या करना है. मदन मोहन सक्सेना. Tuesday, September 24, 2013. परायी दुनिया. Monday, September 16, 2013. प...
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : November 2013
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें. मंगलवार, 12 नवंबर 2013. ग़ज़ल ( जिंदगी का सफ़र). जिंदगी का सफ़र). बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके. जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है. प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर. जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है. कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ. इक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है. इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा. ये बक्त की साजिश है या फिर बक्त का एहसान है. गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग. प्रस्तुति:. गज़ल (रचना ). गज़ल (रचना ).
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ : मुक्तक (आदत)
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मदन मोहन सक्सेना की रचनाएँ. Monday, October 7, 2013. मुक्तक (आदत). मुक्तक (आदत). मयखाने की चौखट को कभी मंदिर ना समझना तुम. मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी. चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने. आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी. प्रस्तुति:. मदन मोहन सक्सेना. October 13, 2013 at 7:51 AM. बहुत खूब. Subscribe to: Post Comments (Atom). Get this Recent Comments Widget. Promote Your Page Too. Time in New Delhi. मुक्तक (आदत). मेरा साझा काब्य संकलन. मेरी रचनाएँ यहाँ भी. Do you like our website? दुनì...
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : May 2015
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ. Monday, May 25, 2015. कबिता अनबरत १ में मेरी रचनाएँ. प्रिय मित्रों. मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरी रचनाओं को "कबिता अनबरत " में स्थान दिया गया है। संपादक श्रीमती चन्द्र प्रभा सूद का बहुत बहत आभार।. मदन मोहन सक्सेना. Wednesday, May 20, 2015. अणुभारती में प्रकाशित ब्यँग्य. अणुभारती में प्रकाशित ब्यँग्य. मदन मोहन सक्सेना. परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरा ब्यंग्य. परमाणु पुष्प में पूर्ब. प्रकाशित मेरा ब्यंग्य. मदन मोहन सक्सेना . Tuesday, May 5, 2015. एक सा...
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : August 2015
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ. Monday, August 31, 2015. मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -१ , अंक १२ ,सितम्बर २०१५ में. ग़ज़ल (इस शहर में ). इन्सानियत दम तोड़ती है हर गली हर चौराहें पर. ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है. इक नक़ली मुस्कान ही साबित है हर चेहरे पर. दोस्ती प्रेम ज़ज्बात की शहर में कीमत ही क्या है. मुकद्दर है सिकंदर तो सहारे बहुत हैं इस शहर में. शहर में जो गिर चूका ,उसे बचाने में बचा ही क्या है. शहर में हर तरफ भीड़ है बदहबासी है अजीब सी. ग़ज़ल (इस शहर में ). मदन मोहन सक्सेना. Tuesday, August 4, 2015.
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : March 2015
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें. बुधवार, 11 मार्च 2015. ग़ज़ल (हिम्मत साथ नहीं देती). हिम्मत साथ नहीं देती. किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात. सुनने बाले ब्याकुल हैं अब अपना राग सुनाने को. हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके. सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को. कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है. द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को. भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को. मौलिक और अप्रकाशित. प्रस्तुति. मदन मोहन सक्सेना. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. Promote Your Page Too.
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें : April 2013
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मदन मोहन सक्सेना की ग़ज़लें. मंगलवार, 2 अप्रैल 2013. क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है. हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में . एक जमी बक्शी. थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन. हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में. आज नजर आती मायूसी मानबता के चहेरे पर. अपराधी को सरण मिली है आज पुलिस के डेरे में. बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है. जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में. जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है. ग़ज़ल प्रस्तुति:. मदन मोहन सक्सेना. नई पोस्ट. Time in New Delhi.
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