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Sunday, January 18, 2015. वैष्णव भक्ति आन्दोलन का अखिल भारतीय स्वरुप. रतीय इतिहास में मध्यकाल राजनीतिक. सांस्कृतिक. भक्ति आंदोलन ने समय समय पर लगभग पूरे देश को प्रभावित किया और उसका धार्मिक सिद्धांतों. धार्मिक अनुष्ठानों. नैतिक मूल्यों और लोकप्रिय विश्वासों पर ही नहीं. बल्कि कलाओं और संस्कृति पर भी निर्णायक प्रभाव पड़ा।. 160;          . आकांक्षाओं और आदर्शों की भी अभिव्यक्ति हुई थी ।. आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए. Posted by साहित्यालोचन. Monday, September 1, 2014. Wednesday, June 18, 2014. कबीर...

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Sunday, January 18, 2015. वैष्णव भक्ति आन्दोलन का अखिल भारतीय स्वरुप. रतीय इतिहास में मध्यकाल राजनीतिक. सांस्कृतिक. भक्ति आंदोलन ने समय समय पर लगभग पूरे देश को प्रभावित किया और उसका धार्मिक सिद्धांतों. धार्मिक अनुष्ठानों. नैतिक मूल्यों और लोकप्रिय विश्वासों पर ही नहीं. बल्कि कलाओं और संस्कृति पर भी निर्णायक प्रभाव पड़ा।. 160;          . आकांक्षाओं और आदर्शों की भी अभिव्यक्ति हुई थी ।. आगे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए. Posted by साहित्यालोचन. Monday, September 1, 2014. Wednesday, June 18, 2014. कबीर...

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साहित्यालोचन: *** 'सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या

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Thursday, August 14, 2008. सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या. सिन्दूर. नागार्जुन. परिस्थिति. तुम्हारा. सिंदूर. व्यक्ति. चाहेगा. उच्छ्वास. डाल दे. निःश्वास. किन्तु. चिंता. प्रत्यक्ष. स्मृति. विस्मृति. भींगी. स्मृति. लीचियां. मिथिला. कुमुदिनि. नीलिमा. व्यक्ति. किन्तु. प्रवासी. कहेंगे. मरूंगा. देंगे. निर्बाध. सुनोगी. रहूंगा. सांध्य. पश्चिमांत. लालिमा. सुमुखि. तुम्हारा. सिंदूर. व्याख्या). सिंदुर तिलकित भाल. कालिदास. प्रो. अजय तिवारी. से साभार. आप देख सकते हैं इनकी पुस्तक. Posted by भास्कर रौशन. परम्पर&#23...

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साहित्यालोचन: मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया

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Thursday, July 17, 2008. मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. रेणु ने जिस अंचल को `मैला आंचल' में नायकत्व प्रदान किया है, वह कैसा अंचल है? लेकिन धरती माता अभी स्वर्णांचला है! दुलारचंद कापरा को जानते हो न? मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री ने मानव-चरित्र पर समाज को महत्त्व देने के कारण संथालों को ज़मीन लौटाने...मुट्ठी खोलिए! बस्ता दीजिए बालदेवजी! मैं जलकर मर जाऊंगी, मगर! हे भगवान! सतगुरु हो! जै गांधीजी! बाबा .जै बावनदासजी! लछमी रो रही है. नंदकिशोर नवल,. वागर्थ अंक १२७. Tags : #मै...

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साहित्यालोचन: *** भारतीय सामंतवाद

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Tuesday, May 12, 2009. भारतीय सामंतवाद. भिन्नता है तो कितनी? धर्म और धार्मिक संस्थाएँ यूरोपीय ढंग का वर्चस्व भारत में स्थापित क्यों नहीं कर सकीं? मिलकर सामाजिक सोपानिकता की जड़ता को और अधिक सुदृढ़, निरंकुश और आत्तायी बना दिया।. 48 ऋग्वेद, 8/8/3. 49 के. दामोदरन, भारतीय चिंतन परम्परा, पृ॰ 209. 50 वही, पृ॰ 208. 51 रोमिला थापर, भारत का इतिहास, पृ॰ 221. 53 हरबंस मुखिया, मध्यकालीन भारत: नए आयाम, पृ॰ 87. 54 मार्क ब्लाख, समांती समाज, भाग-2, पृ॰ 219. 55 दर्शन कोश, पृ॰ 702. 61 वही, पृ॰ 211-212. इस आलेख क&#23...

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साहित्यालोचन: *** खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत !

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Monday, April 15, 2013. खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत! ज के साहित्य में वसंत की पड़ताल की जाए तो निश्चित ही यह समझ बनती है कि कहीं साहित्य से उसका सम्बन्ध ऐतिहासिक तो नहीं था! साहित्य में वसंत की यह परंपरा एक लम्बे समय या कालान्तारों के. साथ चलती रही लेकिन अपने समकालीन पड़ाव पर आते हुए वह इस तरह से बिखरी कि उसका अनुमोदन. गैर-मानवतावादी प्रवृत्तियों से! कह गए सारे अग्रज ऋतु वसंत की. है मदमाती छलकाती यौवन सौन्दर्य प्रेम का. क्या सचमुच यही वसंत है! डॉ. अरुणाकर पाण्डेय. आभार सहित). April 15, 2013 at 10:44 PM.

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साहित्यालोचन: *** ‘क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक

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Sunday, June 2, 2013. 8216;क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक. क़िस्सा क्या है. कहानी का कच्चा माल. कहानियों के इस कच्चे माल को बरतने में राजेश जोशी ने कोई कोताही नहीं बरती और अपने पाठकों के लिए विधागत सीखचों के बंधन से मुक्त एक. मुक्त-सा गल्प. रच डाला. यह उन्मुक्तता. किस्सा कोताह. में छाई हुई है. मुक्त-सा इसलिए भी कि. किस्सों को कहानी बनने में वक्त लगता है. एक पूरी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. हो जाते हैं. इस अर्थ में. किस्सा कोताह. एक अजीब-सी लत. किस्सा कोताह. बनते रहना. पाँच किस्...इसमें द&#...क़&...

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अपना हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य: September 2008

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अपना हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य. Friday, September 26, 2008. भारतेंदु मंडल के कवि‍यों की राष्‍ट्र-भक्‍ति‍ और राजभक्‍ति‍. छायावाद. में नए छंद. प्रयोग में आने लगे थे, पि‍छली पोस्‍ट में इसकी चर्चा हो चुकी है। वस्‍तु-वि‍धान. के स्‍तर पर भारतेंदु युग. द्वि‍वेदी युग. और छायावादी युग. में जो एक सतत वि‍कास नजर आता है, उससे काव्‍य अनेकरूपता. की ओर अग्रसर होने लगता है। शुक्‍ल जी ने तृतीय उत्‍थान. भारतेंदु युग:. और राजनीति‍क स्‍थि‍ति. के शब्‍दों में-. के साथ-साथ राजभक्‍ति‍. के अनुसार-. भारतेंदु य&#2...तक आते-आत&#2375...

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कविता-समय: September 2010

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. मंगलवार, 7 सितंबर 2010. मैं एक शिक्षक (कविता ). मैं एक शिक्षक. एक मध्यम वर्ग का संकुचित,. कुंठित आदमी।. बाहर की दुनिया में हुई तब्दीली से. चंद सपने- अपने, बच्चों के, परिवार के. बहुत अधिक अपेक्षाएं दुनिया की, समाज की. सपनों और अपेक्षाओं की प्रत्यंचा से. धनुष की तरह तना मैं. एक शिक्षक. न तो ढंग से किसी बाप का फर्ज निभाया. न बेटे , भाई या पति का. उपहारों में पाए ज्ञान का बोझ. पीठ पर लादे. लद्दू घोड़े की तरह. सिखाते हुए. नई पोस्ट.

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कविता-समय: June 2010

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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. बुधवार, 30 जून 2010. पुलिसवालों की ड्यूटी. अब आप कहेंगे कि वे तो जाँच करते हैं हमें उनका सहयोग करना चाहिए क्यंकि मुद्दा नागरिक सुरक्षा का है।. देखिये, वे कुछ इस तरह नागरिक को परेशान करते है,. आपको हाथ देकर रुकवा लेंगे।. फिर आपका ड्राइविंग लाइसेंस मांगकर रख लेंगे।. कोई कम निकला तो चालान करेंगे।. आप शरीफ दीखते है तो गहराई से काटेंगे।. नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. आना आपका.

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बूंद-बूंद इतिहास: July 2012

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बूंद-बूंद इतिहास. रविवार, 22 जुलाई 2012. प्रयोगवादी कविता की प्रवृत्तियां. प्रयोगवादी कविता में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रवृत्तियां देखी गई हैं:-. 1 समसामयिक जीवन का यथार्थ चित्रण:. उगल रही हैं खानें सोना,. अभ्रक,तांबा,जस्त,क्रोनियम. टीन,कोयला,लौह,प्लेटिनम. युरेनियम,अनमोल रसायन. कोपेक,सिल्क,कपास,अन्न-धन. द्रव्य फोसफैटो से पूरित! 2 घोर अहंनिष्ठ वैयक्तिकता:-. मेरी अंतरात्मा का यह उद्वेलन-. और अभिव्यक्ति के लिए तड़प उठता है-. चलो उठें अब. अब तक हम थे बंधु. सैर को आए-. और रहे बैठे तो. इस कविता म...5 अन&#236...

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बूंद-बूंद इतिहास: January 2010

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बूंद-बूंद इतिहास. शनिवार, 30 जनवरी 2010. कृष्णभक्ति को समर्पित अन्य कवि. इस युग में कृष्ण भक्ति को समर्पित कुछ अन्य कवि भी हुए, जिसे किसी विचारधारा के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता । जैसे मीरा, रहीम, रसखान । मीरा. प्रस्तुतकर्ता. मनोज भारती. 4 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: अन्य कृष्ण भक्त कवि. शुक्रवार, 29 जनवरी 2010. कृष्णभक्ति काव्य शाखा के अष्टछाप कवि और उनकी रचनाएँ. कुंभनदास : इनके फुटकल पद ही मिलते हैं ।. प्रस्तुतकर्ता. मनोज भारती. 2 टिप्‍पणियां:. गुरुवार, 28 जनवरी 2010. इसके प्रवर...इस स&#230...

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बूंद-बूंद इतिहास: December 2011

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बूंद-बूंद इतिहास. मंगलवार, 27 दिसंबर 2011. छयावादी युग में हास्य व व्यंग्यात्मक काव्य का सृजन. पत्रिका के संपादक ईश्वरीप्रसाद शर्मा का नाम ऐसी कविता रचने में सर्वप्रथम स्थान पर है।. आदि पत्रिकाओं में इनकी हास्यरस से भरपूर कविताएं प्रकाशित हुई।इनके काव्य संकलन. चना चबेला. में तत्कालीन समाज. हरिशंकर शर्मा के. पिंजरा-पोल. चिड़िया घर. पांडेय बेचन शर्मा. का इस तरह की काव्य रचनाओं में एक अलग ही स्थान है। उनकी व्यंग&...कृष्णदेव प्रसाद गौड़ जो. बेढब बनारसी. के उपनाम से लिखते थे. नाम से प्रक&#23...उल्ल&#237...

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भारतीय-दर्शन: January 2010

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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). मंगलवार, 19 जनवरी 2010. झूठ क्या होता है? बड़ा ही पुराना प्रसंग है - सच और झूठ का ।. क्या होता है सच? हमें पता है? सच क्या था? और हम प्रलाप नहीं करना चाहते, हम अपने भावों को संप्रेषित करना चाहते हैं।. लेकिन झूठ? झूठ का कोई चेहरा पहचानते हैं आप? यह झूठ क्या होता है? आप जिसे सच नहीं मानते , वह झूठ होता है, है न! मतलब है ।. होता है।. 0 टिप्पणियाँ. शुक्रवार, 8 जनवरी 2010. और जब नहीं समझे&#230...विकल&#238...

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Tuesday, November 15, 2011. बाज़ार में बिक रही थी. हत्या करके लायी गई. मछलियाँ. ढेर पर ढेर लगी. मरी मछलियाँ. धड़ कटा-खून सना. बदबू फैलाती बाज़ार भर में. मरी मछलियों पर जुटी भीड़. हाथों में उठाकर. भांपती उनका ताज़ापन. लाश का ताज़ापन. भीड़ जुटी थी. मुर्गे की दूकान पर. बड़े-बड़े लोहे के पिंजरों में. बंद सफ़ेद-गुलाबी मुर्गे या मुर्गियाँ. मासूम आँखों से भीड़ को ताकते. और भीड़ ताकती उनको. भूखी निगाहों से. अपनी बाँह के दर्द में. तड़पड़ाते आदमी ने. कि कोई छू ना पाए. दुकानदार से कहता. अलग कर दिए गए.

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Chashmebaddoor: December 2011

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Thursday, December 8, 2011. लड़की की नज़र. बस स्टैंड पर बैठी लड़की कि नज़र. डूबते सूरज कि लालिमा पर पड़ी और उसकी आँखे चमक उठी. उसने तुरंत उस बेहद दिलकश नज़ारे को साझा करने के लिए. बगल ही में बैठे प्रेमी से कहा. देखो मुझे उसमे तुम ही दिख रहे हो. तुम्हारा नाम आसमान कि लाल बिंदी बन गया है. प्रेमी ने उसकी उत्सुक आँखों में डूबते हुए. हिंदी फिल्म के गाने कि एक लाइन दोहराई. तेरे चेहरे से नज़र नहीं-. हटती नज़ारे हम क्या देखें' . और उसने कहा. कुछ कहना चाहती हो? अपराजिता. Subscribe to: Posts (Atom).

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6, ఆగస్టు 2015, గురువారం. మీరు తెలుగా! ఐతే మీరు విని తీరవలసిన ఉపన్యాసం. వస్తాను అనరు, వచ్చెదను అంటారు. మా అమ్మాయిని తీసుకొని వెళ్లి దింపి వచ్చాను అని మనం అనే ఈ మాటలను వాళ్ళు ఎలా అంటారు అంటే ". మా గూతురిని గొనిపోయి విడిచి వచ్చితి" అని అంటారుట. శ్రీలంకలో బంగారం వ్యాపారాన్ని. ఇంకా ఇలా అనేకానేక విశేషాలు ఉన్నాయి వీడియోను పూర్తిగా చూడండి/వినండి. కాకికి కడవడు, పిచ్చికకు పిడికెడు. వీరిచే పోస్ట్ చెయ్యబడింది. వ్యాఖ్యలు లేవు:. దీన్ని ఇమెయిల్ చెయ్యండి. ప్రతిక్రియలు:. 2 వ్యాఖ్యలు:. ఈరోజు (అంటే...కాలమాన&#3...లండ...

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साहित्यम्. हिन्दुस्तानी-साहित्य सेवार्थ एक शैशव-प्रयास. मुखपृष्ठ. व्यंग्य. कविता/नज़्म. समीक्षा. साहित्यम् - वर्ष 1 - अङ्क 8 - दिसम्बर 14, जनवरी-फ़रवरी 15, होली विशेषाङ्क. हुलसै हिया. दूर होंय दुख-दर्द. सावन तिरिया झूमती. फागुन फड़कै मर्द. होली के त्यौहार की बड़ी अनोखी रीत. मुँह काला करते हुये जतलाते हैं प्रीत. अगर ज़िन्दगी काया है तो उपटन हैं त्यौहार. शाश्वत जीवन दर्शन का अवगाहन हैं त्यौहार. विकल ह्रदय में सम्बल जागे. थका बदन भी सरपट भागे. कैसा भी हो कोई निठल्ला. हिल्ले. चौखट पर जब आते उत्सव. 8216; थे. आओ द&...

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