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अपना हिन्दी साहित्य: September 2008
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अपना हिन्दी साहित्य. Friday, September 26, 2008. भारतेंदु मंडल के कवियों की राष्ट्र-भक्ति और राजभक्ति. छायावाद. में नए छंद. प्रयोग में आने लगे थे, पिछली पोस्ट में इसकी चर्चा हो चुकी है। वस्तु-विधान. के स्तर पर भारतेंदु युग. द्विवेदी युग. और छायावादी युग. में जो एक सतत विकास नजर आता है, उससे काव्य अनेकरूपता. की ओर अग्रसर होने लगता है। शुक्ल जी ने तृतीय उत्थान. भारतेंदु युग:. और राजनीतिक स्थिति. के शब्दों में-. के साथ-साथ राजभक्ति. के अनुसार-. भारतेंदु य...तक आते-आते...
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कविता-समय: September 2010
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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. मंगलवार, 7 सितंबर 2010. मैं एक शिक्षक (कविता ). मैं एक शिक्षक. एक मध्यम वर्ग का संकुचित,. कुंठित आदमी।. बाहर की दुनिया में हुई तब्दीली से. चंद सपने- अपने, बच्चों के, परिवार के. बहुत अधिक अपेक्षाएं दुनिया की, समाज की. सपनों और अपेक्षाओं की प्रत्यंचा से. धनुष की तरह तना मैं. एक शिक्षक. न तो ढंग से किसी बाप का फर्ज निभाया. न बेटे , भाई या पति का. उपहारों में पाए ज्ञान का बोझ. पीठ पर लादे. लद्दू घोड़े की तरह. सिखाते हुए. नई पोस्ट.
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कविता-समय: June 2010
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मंथन हमारी भाषा आपकी. ગુજરાતી. বাংগ্লা. ਗੁਰਮੁਖੀ. తెలుగు. हिन्दी. बुधवार, 30 जून 2010. पुलिसवालों की ड्यूटी. अब आप कहेंगे कि वे तो जाँच करते हैं हमें उनका सहयोग करना चाहिए क्यंकि मुद्दा नागरिक सुरक्षा का है।. देखिये, वे कुछ इस तरह नागरिक को परेशान करते है,. आपको हाथ देकर रुकवा लेंगे।. फिर आपका ड्राइविंग लाइसेंस मांगकर रख लेंगे।. कोई कम निकला तो चालान करेंगे।. आप शरीफ दीखते है तो गहराई से काटेंगे।. नहीं।. प्रस्तुतकर्ता. रवीन्द्र दास. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. आना आपका.
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बूंद-बूंद इतिहास: July 2012
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बूंद-बूंद इतिहास. रविवार, 22 जुलाई 2012. प्रयोगवादी कविता की प्रवृत्तियां. प्रयोगवादी कविता में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रवृत्तियां देखी गई हैं:-. 1 समसामयिक जीवन का यथार्थ चित्रण:. उगल रही हैं खानें सोना,. अभ्रक,तांबा,जस्त,क्रोनियम. टीन,कोयला,लौह,प्लेटिनम. युरेनियम,अनमोल रसायन. कोपेक,सिल्क,कपास,अन्न-धन. द्रव्य फोसफैटो से पूरित! 2 घोर अहंनिष्ठ वैयक्तिकता:-. मेरी अंतरात्मा का यह उद्वेलन-. और अभिव्यक्ति के लिए तड़प उठता है-. चलो उठें अब. अब तक हम थे बंधु. सैर को आए-. और रहे बैठे तो. इस कविता म...5 अनì...
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बूंद-बूंद इतिहास: January 2010
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बूंद-बूंद इतिहास. शनिवार, 30 जनवरी 2010. कृष्णभक्ति को समर्पित अन्य कवि. इस युग में कृष्ण भक्ति को समर्पित कुछ अन्य कवि भी हुए, जिसे किसी विचारधारा के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता । जैसे मीरा, रहीम, रसखान । मीरा. प्रस्तुतकर्ता. मनोज भारती. 4 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: अन्य कृष्ण भक्त कवि. शुक्रवार, 29 जनवरी 2010. कृष्णभक्ति काव्य शाखा के अष्टछाप कवि और उनकी रचनाएँ. कुंभनदास : इनके फुटकल पद ही मिलते हैं ।. प्रस्तुतकर्ता. मनोज भारती. 2 टिप्पणियां:. गुरुवार, 28 जनवरी 2010. इसके प्रवर...इस सæ...
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बूंद-बूंद इतिहास: December 2011
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बूंद-बूंद इतिहास. मंगलवार, 27 दिसंबर 2011. छयावादी युग में हास्य व व्यंग्यात्मक काव्य का सृजन. पत्रिका के संपादक ईश्वरीप्रसाद शर्मा का नाम ऐसी कविता रचने में सर्वप्रथम स्थान पर है।. आदि पत्रिकाओं में इनकी हास्यरस से भरपूर कविताएं प्रकाशित हुई।इनके काव्य संकलन. चना चबेला. में तत्कालीन समाज. हरिशंकर शर्मा के. पिंजरा-पोल. चिड़िया घर. पांडेय बेचन शर्मा. का इस तरह की काव्य रचनाओं में एक अलग ही स्थान है। उनकी व्यंग&...कृष्णदेव प्रसाद गौड़ जो. बेढब बनारसी. के उपनाम से लिखते थे. नाम से प्रक...उल्लí...
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भारतीय-दर्शन: January 2010
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भारतीय-दर्शन. बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। ). मंगलवार, 19 जनवरी 2010. झूठ क्या होता है? बड़ा ही पुराना प्रसंग है - सच और झूठ का ।. क्या होता है सच? हमें पता है? सच क्या था? और हम प्रलाप नहीं करना चाहते, हम अपने भावों को संप्रेषित करना चाहते हैं।. लेकिन झूठ? झूठ का कोई चेहरा पहचानते हैं आप? यह झूठ क्या होता है? आप जिसे सच नहीं मानते , वह झूठ होता है, है न! मतलब है ।. होता है।. 0 टिप्पणियाँ. शुक्रवार, 8 जनवरी 2010. और जब नहीं समझेæ...विकलî...
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Chashmebaddoor: November 2011
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Tuesday, November 15, 2011. बाज़ार में बिक रही थी. हत्या करके लायी गई. मछलियाँ. ढेर पर ढेर लगी. मरी मछलियाँ. धड़ कटा-खून सना. बदबू फैलाती बाज़ार भर में. मरी मछलियों पर जुटी भीड़. हाथों में उठाकर. भांपती उनका ताज़ापन. लाश का ताज़ापन. भीड़ जुटी थी. मुर्गे की दूकान पर. बड़े-बड़े लोहे के पिंजरों में. बंद सफ़ेद-गुलाबी मुर्गे या मुर्गियाँ. मासूम आँखों से भीड़ को ताकते. और भीड़ ताकती उनको. भूखी निगाहों से. अपनी बाँह के दर्द में. तड़पड़ाते आदमी ने. कि कोई छू ना पाए. दुकानदार से कहता. अलग कर दिए गए.
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Chashmebaddoor: December 2011
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Thursday, December 8, 2011. लड़की की नज़र. बस स्टैंड पर बैठी लड़की कि नज़र. डूबते सूरज कि लालिमा पर पड़ी और उसकी आँखे चमक उठी. उसने तुरंत उस बेहद दिलकश नज़ारे को साझा करने के लिए. बगल ही में बैठे प्रेमी से कहा. देखो मुझे उसमे तुम ही दिख रहे हो. तुम्हारा नाम आसमान कि लाल बिंदी बन गया है. प्रेमी ने उसकी उत्सुक आँखों में डूबते हुए. हिंदी फिल्म के गाने कि एक लाइन दोहराई. तेरे चेहरे से नज़र नहीं-. हटती नज़ारे हम क्या देखें' . और उसने कहा. कुछ कहना चाहती हो? अपराजिता. Subscribe to: Posts (Atom).