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अपनों का साथ: June 2013
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Wednesday, June 19, 2013. धरती के ऊपर नल है. उसमें आता जल है. जल को निहारने को. प्यासी ये धरती आई. पर बिखर गई. उस दर्रे की गूंज से. और फूट पड़ा जल का दरिया. चारों ओर. तबाही का मंज़र. दिखाने को. पवित्र धरती पवित्र पानी. फिर क्यों है इसकी. अजीब कहानी. मानो तो अमृत की धारा. नहीं तो. जीवन का अंतिम कहानी. धरती के ऊपर नल है. उसमे आता जल है. जो ले डूबा इस बार. ना जाने कितनी ही जिंदगानी. बन कर महाकाल. पथराए कानन ने. चट्टानों का सीना भी. छलनी किया. थी यहीं एक बस्ती. थे कुछ मकान. और पुल, कल तक. करते हुए. गया, ...
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द्विजेन्द्र "द्विज": ..काफिलों में जब कभी ग़द्दारियां रहने लगें
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द्विजेन्द्र "द्विज". साग़र साहेब. रेडियो सबरंग पर 'द्विज'. असिक्नी" साहित्यिक पत्रिका. असिक्नी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. द्विज" का ग़ज़ल संग्रह. हिन्दी में लिखिए. विजेट आपके ब्लॉग पर. इन्हें भी पढ़ें. विनय पत्रिका' से बोधित्सव. चाय-घर' में बृजेश. अक्षर जब शब्द बनते हैं. अनुभुति. अनुराग का 'सबद'. अनूप सेठी. अरुण आदित्य 'अ-आ'. आलोक तोमर. आशीष ऑलरॉऊंडर. आशुतोष दुबे का 'मेरी दृष्टि'. इन्दौर का जनवादी लेखक संघ. उदय प्रकाश. कबाड़खाना. कुमार अंबुज. कृत्या. प्रत्यक्षा. प्रदीप की 'भोर'. मोहल्ला. कहां पह...क़&...
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कुछ यूँ पढ़ें ...(ब्लॉग बुलेटिन का हिस्सा ): आत्मा के इंधन से बने शाब्दिक भोजन
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कुछ यूँ पढ़ें .(ब्लॉग बुलेटिन का हिस्सा ). बहुत सारी जगहों पर टिप्पणियाँ देने के क्रम में हम मात्र यही बार बार कहते हैं - 'बहुत बढ़िया, आभार' . समझ ही नहीं आता- कि क्या पढ़ा, क्या समझा! तो एक प्रयास कुछ ख़ास रचनाओं को यूँ लेने और बताने का . मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012. आत्मा के इंधन से बने शाब्दिक भोजन. आह के दहकते कोयले. मन को बना देते हैं ज्वालामुखी. फटता है जब ज्वालामुखी. तो चिथड़ों में बनती है आकृति-. कवि की,कथाकार की . सुशील कुमार - http:/ www.sushilkumar.net/. क्या बताऊँ. भरपेट खाना. सबकुछ झí...
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अपनों का साथ: May 2014
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Friday, May 9, 2014. माँ कैसे जान लेती है दिल की हर बात. पर,खुद में सम्पूर्ण. कैसे जान लेती है. दिल की हर बात. हर जज़्बात को. जीवन चक्र. शैशव से यौवन तक के. और आँखों में. झलकते किसी के प्यार को. शांत, सौम्य. पर दिल से धरती सी मजबूत. उसकी फुलवारी में महकते. हर फूल की. महक को वो कभी. खोने नहीं देती और. अपने मौन को टूटने नहीं देती. उसकी आँखों के पानी को. जब तक समझो. वो भाप बन कर उड़ चुके होते हैं. वो,हर दुख को झाड लेती है. जीवन जीने के लिए. जो पल-पल अहसास करवाती है. अपने होने का. वो ही साइड. बेगान...सजे...
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अपनों का साथ: November 2013
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Wednesday, November 13, 2013. आप सब आमंत्रित हैं. हम गुलमोहर के रचनाकर. अपनी खुशियों में करना चाहते हैं. आपको शामिल . चाहते हैं आपकी शुभकामनाएँ. आपकी गरिमामय उपस्थिति. आप सबका प्रदीप्त सान्निध्य।. तो आएँगे न . जरूर आइएगा. इंतज़ार करेंगे हम सब. 30 कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह "गुलमोहर". का विमोचन. सान्निध्य :. लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि. सुमन केशरी अग्रवाल, वरिष्ठ कवयित्री. लक्ष्मी शंकर वाजपेई, वरिष्ठ कवि-गीतकार. ओम निश्चल, वरिष्ठ कवि-लेखक. तृतीय तल. दिन : 16 नवम्बर 2013. आभा खरे. मेरा ...जौन...
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द्विजेन्द्र "द्विज": इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
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द्विजेन्द्र "द्विज". साग़र साहेब. रेडियो सबरंग पर 'द्विज'. असिक्नी" साहित्यिक पत्रिका. असिक्नी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. द्विज" का ग़ज़ल संग्रह. हिन्दी में लिखिए. विजेट आपके ब्लॉग पर. इन्हें भी पढ़ें. विनय पत्रिका' से बोधित्सव. चाय-घर' में बृजेश. अक्षर जब शब्द बनते हैं. अनुभुति. अनुराग का 'सबद'. अनूप सेठी. अरुण आदित्य 'अ-आ'. आलोक तोमर. आशीष ऑलरॉऊंडर. आशुतोष दुबे का 'मेरी दृष्टि'. इन्दौर का जनवादी लेखक संघ. उदय प्रकाश. कबाड़खाना. कुमार अंबुज. कृत्या. प्रत्यक्षा. प्रदीप की 'भोर'. मोहल्ला. क़ाफ...काफ...
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अपनों का साथ: April 2014
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Tuesday, April 29, 2014. उसकी आखिरी रात में. उसकी आखिरी रात में. साँसों का चलना. साँसों का रुकना. इसी के बीच. रुक-रुक के चलती जिंदगी. जिंदगी की आखिरी रात. सो कर नहीं बिताना चाहती. वो भूल जाना चाहती है. वो एक औरत है. एक स्त्री, एक माँ है. एक बेटी और एक बहन है. किसी के घर की. वो खुद के लिए एक संसार. रचना चाहती है. उसके आँसू, उसकी हँसी. और उसके दर्द की परछाई. जिस में छिपी है उसकी जिंदगी की सच्चाई. जिस से वो. बाहर निकलना चाहती है. जो फर्ज़ और दायित्व के नाम पर. वो पत्थर तोड़ती,. कम ही आँका. उसे अपने. इन बí...
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पतझड़ | The Fall of Leaves...: शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक्षक दिवस पर विशेष
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यानि, पीले पत्ते शाखों से बेजान होकर झड़ पड़े हैं. लौट आये हैं धरती पर वापस अपने अस्तित्व को माटी में. समाहित करने .पर कोंपलें झूम रहीं अभी तरु-शिखाओं पर अपने. हश्र से बेख़बर उसे क्या पता कि जड़ें पाताल के अंधेरे में किस तरह लड़ रहीं ,. मर रहीं, सड़ रहीं, फिर भी धरती का सत्व-जल सोख दिन-रात उसे सींच रहीं, और बचा रहीं. पूरे जंगल का वजूद! शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के बदलते स्वरूप - शिक. New Dimensions to Blog patjhad- [The fall of lea. पतझड़ का नया रूप - सुशील कुमार. पतझड़ The Fall of Leaves. अगर आपका व...
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अपनों का साथ: February 2014
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Sunday, February 2, 2014. जिंदगी .खुशी का वो पल. जिंदगी. जिंदगी ' के फरवरी अंक में ' गुलमोहर' को भी इसी श्रेणी में शामिल किया गया है. 31 जनवरी को ' अहा! Labels: आह जिंदगी में पुस्तक की चर्चा. लेख .कुछ खुशी के पल. Subscribe to: Posts (Atom). मेरा नया ठिकाना. क्षितिजा. क्षितिजा .मेरा पहला काव्य संग्रह. ऐ-री-सखी (दूसरा काव्य संग्रह और अरुणिमा स्वत्रंत संपादन में पहला कदम ). जिंदगी .खुशी का वो पल. पसंदीदा ब्लॉग 01. दयालुता. अजित गुप्ता का कोना. तीखी कलम से. चर्चामंच. कल सुनना बाबू. नारी , NAARI. तितल&...
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अपनों का साथ: July 2013
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Monday, July 29, 2013. एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम. मेरा तकिया कलाम) क्या मैं ऐसी हूँ कि हर किसी को मुझ से सिर्फ शिकायत रहती है '. ये सपने इतना शोर क्यों करते हैं? पर मेरी सबसे बडी सोच' तुम ' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि ' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए? आगे भी सफर ऐसे ही जारी रहेगा .मेरे साथ अंजु(अनु) चौधरी. Labels: एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम. डायरी के पन्ने (कहानी संग्रह)के कुछ हिस्से. Saturday, July 27, 2013. हाय ये कुर्सी! उफ़ ये कुर्सी. उफ़ ये कुर्सी. देखो ना. कर डाले. 2) कि...
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